(घनाक्षरी)
शब्द-शब्द दर्द हार, सुनो मात ये गुहार,
गर्भ में पुकारती हैं, नर्म कली बेटियाँ॥
रोम-रोम अनुलोम, हो न जाए श्वाँस होम,
टूटे न कभी ये स्वप्न, चुलबुली बेटियाँ॥
सृष्टि-सृजन आधार, कल की छिपी फुहार,
शूल सी नहीं हैं होती, पीर पली बेटियाँ॥
तेरा ही अभिन्न अंग, भरो तो नवीन रंग,
बेटों को है देती जन्म, धीर ढली बेटियाँ॥
-अनहद गुंजन "गूँज"
बहरीन छंद ... बेटियाँ जीवन होती हैं ... सृजन की पहली कड़ी होती हैं ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना👌
ReplyDeleteबेटियाँ जीवन होती हैं. सुंदर सृजन.
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 01 अक्टूबर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर।
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