अश्क़ जब आँख में आ जाते हैं
हम इक नई ग़ज़ल सुनाते है
ताइरे दिल बंधा है यादों से
पर परिंदे के फड़फड़ाते है
यूँ कलाई पकड़ तो ली तुमने
शर्म से रोयें मुस्कराते है
बर्क़ की चीख़ सुनके बादल भी
उसके हालात पर रो जाते है
आसमाँ के दरख़्त में तारे
चाँदनी को ग़ज़ल सुनाते है
-मनी यादव
वाह ! सुंदर रचना ।
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