Saturday 24 February 2018

कोई भी नहीं चाहिए प्रश्न अभी


कोई भी
नहीं चाहिए
प्रश्न अभी
घिरी हुई हूँ
अभी मैं बहुत से 
प्रश्नों से घिरी
नहीं न जीना 
चाहती मैं......ये 
छटपटाती ज़िन्दगी
पूछता ही नहीं..कोई
टकटकी फिर क्यों...
जब भी कभी..हो
लगाते...जबरन
चिपकाना पड़ता है 
मुस्कुराहट चेहरे पर
एक क्षण के लिए.....
छिपाकर आँसुओँ के..सैलाब,
काटी है भीषण रातें कई
इस दिल में....जो
तरसता है हरदम.. 
साथ के लिए..तुम्हारे

Friday 9 February 2018

भावों की एक मीठी नदी



लगते हो मौन,
निर्विकार, एकाकी
निश्चल खड़े पहाडों की तरह
अटल ,अविचल तुम,
मैंने देखा है
तुम्हारे हृदय के अंतर्मन से 
बूँद-बूँद रिसकर
कल-कल निसृत होती है
भावों की एक मीठी नदी
को शिशु सा किलकते हुये
जिसके निर्जन तट के
आगोश में बैठकर,
सुनकर धड़कती धाराओं का
सुगम संगीत
थका मन विश्राम पाता है
भरकर अंजुरी भर जल
तुम अपनी चौड़ी हथेलियों में
मेरे रुखे,प्यासे होंठों तक लाते हो
उस मीठे,शीतल जल की
सुगंध से ही
मन की क्षुधा शांत हो जाती है
और मन के तटबंधों को
तोड़कर बहने लगती है
तुम्हारे प्रेम की शीतल नदी
जानती हो 
तुम्हारे प्रवाह में 
स्वयं के अस्तित्व को विलीन कर
सर्वस्व भूलकर बहती हुई
मैं पा लेती हूँ
जीवन नदी का अमृत जल।

Thursday 1 February 2018

लालिमा...सा विस्तार


उभरे तुम
आकाश पे
मेरी
ज़िन्दगी के
इन्द्रधनुष से......
तुम्हारा विस्तृत प्रेम
हरा भरा कर देता
तन मन को
पुलकित.....
तुम्हारा प्रेम
खरे सोने सा 
सच्चा.....जीवन
रंग देता
स्नेह की
तुम्हारे
पीली, सुनहरी
धूप में
संग तुम्हारे पाया
जीवन में
ताना बाना बुनते
नारंगी सपनों 
का....प्रेम की 
लालिमा...सा विस्तार
इंद्रधनुषी...सपनो से
सजा-सँवरा
अपना संसार
तुम्हारे बाद
इन्द्रधनुष के 
और...रंग खो गए
बस, दूनी है... 
बैंजनी विषाद की 
छाया....
मेरी ज़िन्दगी
सूनी है...
बिन तेरे.