Saturday, 24 February 2018

कोई भी नहीं चाहिए प्रश्न अभी


कोई भी
नहीं चाहिए
प्रश्न अभी
घिरी हुई हूँ
अभी मैं बहुत से 
प्रश्नों से घिरी
नहीं न जीना 
चाहती मैं......ये 
छटपटाती ज़िन्दगी
पूछता ही नहीं..कोई
टकटकी फिर क्यों...
जब भी कभी..हो
लगाते...जबरन
चिपकाना पड़ता है 
मुस्कुराहट चेहरे पर
एक क्षण के लिए.....
छिपाकर आँसुओँ के..सैलाब,
काटी है भीषण रातें कई
इस दिल में....जो
तरसता है हरदम.. 
साथ के लिए..तुम्हारे

9 comments:

  1. बहुत खूब...
    वाह!!!!

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 10 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. वाह बेहतरीन एवं सुंदर।

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  4. बेहद सुंदर कृति

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  5. दिल को छू जाने वाली अत्यंत मार्मिक रचना

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  6. मर्मस्पर्शी सृजन।
    सादर

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  7. सामान्य तौर पर तो ये अवसाद के लक्षण लगते हैं, पर यदि इशारा उसके साथ की ललक की तरफ़ है जो सबका नियंता है, तो वह हर कहीं मौजूद है

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