कोई भी
नहीं चाहिए
प्रश्न अभी
घिरी हुई हूँ
अभी मैं बहुत से
प्रश्नों से घिरी
नहीं न जीना
चाहती मैं......ये
छटपटाती ज़िन्दगी
पूछता ही नहीं..कोई
टकटकी फिर क्यों...
जब भी कभी..हो
लगाते...जबरन
चिपकाना पड़ता है
मुस्कुराहट चेहरे पर
एक क्षण के लिए.....
छिपाकर आँसुओँ के..सैलाब,
काटी है भीषण रातें कई
इस दिल में....जो
तरसता है हरदम..
साथ के लिए..तुम्हारे
सुन्दर भाव
ReplyDeleteबहुत खूब...
ReplyDeleteवाह!!!!
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 10 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteवाह बेहतरीन एवं सुंदर।
ReplyDeleteवाह..!
ReplyDeleteबेहद सुंदर कृति
ReplyDeleteदिल को छू जाने वाली अत्यंत मार्मिक रचना
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी सृजन।
ReplyDeleteसादर
सामान्य तौर पर तो ये अवसाद के लक्षण लगते हैं, पर यदि इशारा उसके साथ की ललक की तरफ़ है जो सबका नियंता है, तो वह हर कहीं मौजूद है
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