Friday 1 December 2017

बेवफ़ा लिखते हैं वो....अमीर मीनाई

लखनऊ, उत्तर प्रदेश 
1821-1901
उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ
ढूँढने उस को चला हूँ जिसे पा भी न सकूँ

डाल कर ख़ाक मेरे ख़ून पे क़ातिल ने कहा
कुछ ये मेहंदी नहीं मेरी के मिटा भी न सकूँ

ज़ब्त कमबख़्त ने और आ के गला घोंटा है
के उसे हाल सुनाऊँ तो सुना भी न सकूँ

उस के पहलू में जो ले जा के सुला दूँ दिल को
नींद ऐसी उसे आए के जगा भी न सकूँ

नक्श-ऐ-पा देख तो लूँ लाख करूँगा सजदे
सर मेरा अर्श नहीं है कि झुका भी न सकूँ

बेवफ़ा लिखते हैं वो अपनी कलम से मुझ को
ये वो किस्मत का लिखा है जो मिटा भी न सकूँ

इस तरह सोये हैं सर रख के मेरे जानों पर
अपनी सोई हुई किस्मत को जगा भी न सकूँ 


:: शब्दार्थ ::
हसरत-इच्छा, ज़ब्त-सहनशीलता, पहलू-गोद
.......................

Wednesday 8 November 2017

आजकल....अमित जैन 'मौलिक'


फ़ितरत बदल रही है मेरे, दिल की आजकल
है कौन जिसकी चल रही है, ख़ूब आजकल।

क्यों आफ़ताब इश्क़, सिखाता है चाँद को
क्यों धूप चांदनी से, मिल रही है आजकल।

दिलशाद वाकये, चमन में फिर से हो रहे
खुश्बू फ़िज़ा में ख़ूब, घुल रही है आजकल।

किसकी हँसी में मिल के, हवा नज़्म हो गई
किसकी ग़ज़ल में शाम, ढल रही है आजकल।

ये कौन चल रहा है मेरे, नाम खार पर 
पाँवों में चुभन तेज, चल रही है आजकल।

शोला फिशां हूँ ख्वाहिशे, आतिश बना गया 
शम्मा सी कोई दिल में, जल रही है आजकल।
- अमित जैन 'मौलिक'

Wednesday 1 November 2017

4 हाइकू....6 कहमुकरियाँ

अशोक बाबू माहौर

  (1) 
धुंध कोहरा 
ओस पत्तियों पर 
हवा डराती
 (2)
नभ विशाल 
फैला चारों तरफ 
भानु अकेला
 (3)
जगमगाते 
तारे नभ में सारे 
चाँद शर्माता
 (4)
खामोश प्रातः
ठण्ड सरसराती 
मुख थर्राते

........................
कहमुकरियाँ
त्रिलोक सिंह ठकुरेला
(1)
बड़ी अकड़ से पहरा देता।
बदले में कुछ कभी न लेता।
चतुराई से ख़तरा टाला। 
क्या सखि, साजन? ना सखि, ताला।

(2)
दाँत दिखाए, आँखें मींचे।
जब चाहे तब कपड़े खींचे।
डरकर भागूँ घर के अंदर। 
क्या सखि,गुंडा? ना सखि, बंदर। 

(3)
वादे करता, ख़्वाब दिखाये। 
तरह तरह से मन समझाये। 
मतलब साधे, कुछ ना देता।
क्या सखि, साजन? ना सखि, नेता।

(4)
रस लेती मैं उसके रस में। 
हो जाती हूँ उसके वश में।
मैं ख़ुद उस पर जाऊँ वारी।
क्या सखि, साजन? ना, फुलवारी।

(5)
बल उससे ही मुझमें आता।
उसके बिना न कुछ भी भाता।
वह न मिले तो व्यर्थ खजाना।
क्या सखि, साजन? ना सखि, खाना। 

(6)
चमक दमक पर उसकी वारी।
उसकी चाहत सब पर भारी।
कभी न चाहूँ उसको खोना।
क्या सखि, साजन? ना सखि, सोना।

साभार..
साहित्य कुंज


Monday 30 October 2017

शब्द

ऐसा लग रहा है
ब्लॉग मे सालों बाद आई हूँ
आती भी नहीं
एक कविता पढ़ी मैं आज...
प्रतिक्रिया लिखते-लिखते 
वहीं रम गई...
आप भी पढ़िए वो प्रतिक्रिया..
जो ढल गई कविता सी...
....................
कौन कहता है
कालातीत हो जाते हैं
शब्द..
नहीं बनते इतिहास कभी
ये शब्द...
मान भी
अपमान भी
व्यंग भी 
और तंज भी
मुखर होते हैं
इन्हीं शब्दों से...
यही वे शब्द हैं
उपयोग किया है
हरिवंश राय ने
शौकत थानवी ने भी
अपनाया इसे...
इन्हीं शब्दों से
हंसाया जग तो
काका हाथरसी ने....
इन्हीं शब्दों को
अपनाएगी
आने वाली पीढ़िया भी
भाषा चाहे जो भी हो...
शब्द, शब्द है
और रहेंगे भी
शब्द ही
इति शुभम्

Tuesday 24 October 2017

शुतुर्मुर्ग..............भास्कर चौधुरी



मैंने बंद कर ली आँखें
और सोचा शुतुर्मुर्ग की तरह
कि अंधी है दुनिया

जम्हाई ली मैंने
और सोचा चिड़ियाघर में
कैदी शेर की तरह
उबासियाँ ले रही है सारी दुनिया

चुप हो गया मैं
और सोचा सीतनिद्रा में पड़े
ध्रुवी भालू की तरह
कि इन दिनों ऐसी ही है दुनिया... !!
-भास्कर चौधुरी

Saturday 21 October 2017

28 नक्षत्रों पर हाइकु.....प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

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सूर्य की पत्नी
साहस व शौर्य की 
माता अश्विनी।
        
यम का व्रत
ये भरणी नक्षत्र
पृथ्वी धारक।
       
किचपिचिया
षट तारा कृत्तिका
चंद्र की प्रिया।
        
मध्य प्रदेश
रोहिणी का संकेत
चंद्राभिषेक।
        
प्राण संदिग्ध
नक्षत्र का आकार
मृग का शीष।
        
नभ की आद्रा
मानो अश्रु की बूँद
चमके हीरा।
        
ईष्ट अदिति
पुनर्वसु के देव
हैं वृहस्पति।
        
पुष्प से पुष्य
चन्द्रमा करे वास
पूनम पौष्य।
        
सुप्त अश्लेषा
अधिपति हैं नाग
पूज्य देवता।
        
बल प्रदाता
सत्ता, शक्ति से जुड़ा
नक्षत्र मघा।
        
लेती लालिमा
पूर्वा फाल्गुनी प्रेम
असल जामा।
        
ये आर्यमान
उत्तरा फाल्गुनी की
मित्रता शान।
        
रवि व चंद्र
हस्त पर विराजें
बनाएँ दृढ़।
        
नक्षत्र चित्रा
शिल्प और सौंदर्य
रहस्य कला।
        
सिन्धु में सीपी
स्वाति बिन्दू की आशा
रहती प्यासी।
        
अग्नि व इंद्र
विशाखा नक्षत्र के
दिशा संयंत्र।
        
पद्म पुष्प सा
सरस्वती ध्यायिका
ये अनुराधा।
        
सात्विक ज्येष्ठा
प्राण वायु सुरक्षा
धूप व वर्षा।
        
केन्द्र ही मूल
जड़ों को पहचानें
यही उसूल।
        
अपः पूजिता
अजेय पूर्वाषाढ़ा
नक्षत्र सीता।
        
सूर्य की प्रिया
तारा गज दन्त-सा
उत्तराषाढ़ा।
        
तारा श्रवण
जग मापे त्रिपग
प्रभु वामन।
        
ध्रुव सरीखा
दिलाती है धनिष्ठा
मान प्रतिष्ठा।
        
राहू की दशा
नक्षत्र शतभिषा
शनि की पीड़ा।
        
आद्य सुंदर
पूर्वा भाद्र का पद
अजिकपद।
        
आकाश तत्व
उत्तर भाद्रपद
मृतक सर्प।
        
रेवती स्वामी
वणिक ग्रह बुध
बुद्धि दायक।
        
पूर्वाषाढ़ा में
अस्तित्व समाहित
ये अभिजित।

-.प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

Friday 20 October 2017

होता है दिल टुकड़े-टुकड़े.....हिया 'हया'

एक पुरानी ग़ज़ल का मतला और कुछ शेर 
कुछ ख़ामोशी जकड़े-जकड़े
कुछ घबराए उखड़े-उखड़े

ख़ूब सताए आज जुदाई
होता है दिल टुकड़े-टुकड़े

सहमा सहमा सारा मौसम
और नज़ारे उजड़े -उजड़े

मोर पपीहा गुमसुम-गुमसुम
कोयल के सुर उखड़े-उखड़े

टीस जिया की दूर करो अब
मत बैठो जी अकड़े-अकड़े
-हिया 'हया'

Tuesday 17 October 2017

कहाँ जा के ठहर जाऊँ मैं....अनिरुद्ध सिन्हा

हर  नई  रात  की आहट से ही डर जाऊँ मैं
सोचता  हूँ  कि अँधेरों  में  किधर  जाऊँ मैं

धूप की  आँच में  निकला  हूँ सफ़र में साहब
हाथ  कुछ आए  तो फिर लौट के घर जाऊँ मैं

बाद  मुद्दत  के मिला है वो मुझे  क़िस्मत से
फिर  उसी  याद  के दरिया में  उतर जाऊँ मैं

जाने किस मोड़ पे कट जाए ये साँसों की पतंग
किसको  मालूम  कहाँ  जा के ठहर  जाऊँ  मैं

जिससे  नाराज़  बहुत  होके   रहा  मैं  तनहा
वो  कभी  टूट के  मिल जाए तो मर जाऊँ  मैं

-अनिरुद्ध सिन्हा

Monday 16 October 2017

दो दिलों के दरमियाँ..........कुंवर बेचैन

दो दिलों के दरमियाँ दीवार-सा अंतर न फेंक
चहचहाती बुलबुलों पर विषबुझे खंजर न फेंक

हो सके तो चल किसी की आरजू के साथ-साथ
मुस्कराती ज़िंदगी पर मौत का मंतर न फेंक

जो धरा से कर रही है कम गगन का फासला
उन उड़ानों पर अंधेरी आँधियों का डर न फेंक

फेंकने ही हैं अगर पत्थर तो पानी पर उछाल
तैरती मछली, मचलती नाव पर पत्थर न फेंक

यह तेरी काँवर नहीं कर्तव्य का अहसास है
अपने कंधे से श्रवण! संबंध का काँवर न फेंक
-कुंवर बेचैन

Sunday 15 October 2017

महक लुटायेंगे...अमित जैन 'मौलिक'

अब नहीं होती हैं
मुझे गलतफहमियां
अब मुझे दिखने लगी हैं
अपनी भी कमियाँ।
तुम्हारा संग मिला
तो जाना कि जीने का 
ढंग किसे कहते हैं
फूल किसे कहते हैं
सुगंध किसे कहते हैं।
तुमने थाम ली उंगली
तो मैं भी चल पड़ा
तुम्हारे साथ।
अपने आपको
तुम्हें सौंप दिया,
तो तुमने भी रोप दिया
मुझे, अपने आसपास ही 
उपवन की क्यारी में
अब मैं भी हूँ
महकने की तैयारी में
जब खिल जायेंगे तो
महक लुटायेंगे
और सौभाग्य होगा
तो हम भी, 
कभी ना कभी
तुम्हारी तरह
गुलकंद बन जायेंगे।
-अमित जैन 'मौलिक'

Thursday 12 October 2017

तेरी जुबां पे ना आई मेरी ग़ज़ल....सईद राही

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क्या जाने कब कहाँ से चुराई मेरी ग़ज़ल
उस शोख ने मुझी को सुनाई मेरी ग़ज़ल

पूछा जो मैंने उस से के है कौन खुश-नसीब
आँखों से मुस्कुरा के लगाई मेरी ग़ज़ल

एक -एक लफ्ज़ बन के उड़ा था धुंआ -धुंआ
उस ने जो गुनगुना के सुनाई मेरी ग़ज़ल

हर एक शख्स मेरी ग़ज़ल गुनगुनाएं हैं
‘ राही ’ तेरी जुबां पे ना आई मेरी ग़ज़ल
- सईद राही

Tuesday 10 October 2017

रस्में जहाँ की कोई कैसे अब निभायेगा....नीतू राठौर

पीयोगे कैसे निग़ाहों से पिलाई जाती है
शराब जैसे मैकदों में लुटाई जाती है।

तू होश में भी न पहचान पाई एक हमको
प्यास तो आँखों के प्याली से बुझाई जाती है।

तू रोज-रोज ही कहती पियों न आँखों से
दरिया बनके तू दिल में समाई जाती है।

डूबें है रात से आँखों के तेरे अंजुमन में
ये बातें चाँद-सितारों से छुपाई जाती है।

करो तो साँसों पे एतबार अब नहीं होता
सदाए दिल को धड़कन से सुनाई जाती है।

रस्में जहाँ की कोई कैसे अब निभायेगा
ख़्याल ओ ख़्वाब की दुनिया बसाई जाती है।

हमें तो खुद ही पिलाने यूँ आँखें आई थी
ऐसे ही प्यासे की प्यास "नीतू" बढ़ाई जाती है।
-नीतू राठौर

Sunday 8 October 2017

यायावर सा सूर्य.....डॉ. इन्दिरा गुप्ता


उदया चल से 
अस्ताचल तक 
स्वर्ण सूर्य का 
गमन गगन !

नील पथ 
सिंदूरी आचमन 
चलता रथ 
सुन चिरई शगुन !

चक्र भ्रमण 
करे अनवरत 
अष्ट भाव के 
रख अश्व संग !

रुके ना पल भर 
चले निरंतर 
अकिंचन नहीँ 
रख प्रयास कंचन !

यायावर सा 
द्रुत पथगामी 
शनै: शनै:
पूरित कर लंघन !

मलय पवन 
शीतल अति चंचल 
उष्ण स्वेद बिन्दु 
से सिंचित !

चहुं दिशा 
हुँकारे पल पल 
चलित भाव 
रुकना नहीँ सम्भव !

कर्म रथ
हो आरुढित 
सम भाव मन 
सारथी चुन कर !!

-डॉ. इन्दिरा गुप्ता
साभारः अमित जैन 'मौलिक'