Sunday 15 October 2017

महक लुटायेंगे...अमित जैन 'मौलिक'

अब नहीं होती हैं
मुझे गलतफहमियां
अब मुझे दिखने लगी हैं
अपनी भी कमियाँ।
तुम्हारा संग मिला
तो जाना कि जीने का 
ढंग किसे कहते हैं
फूल किसे कहते हैं
सुगंध किसे कहते हैं।
तुमने थाम ली उंगली
तो मैं भी चल पड़ा
तुम्हारे साथ।
अपने आपको
तुम्हें सौंप दिया,
तो तुमने भी रोप दिया
मुझे, अपने आसपास ही 
उपवन की क्यारी में
अब मैं भी हूँ
महकने की तैयारी में
जब खिल जायेंगे तो
महक लुटायेंगे
और सौभाग्य होगा
तो हम भी, 
कभी ना कभी
तुम्हारी तरह
गुलकंद बन जायेंगे।
-अमित जैन 'मौलिक'

5 comments:

  1. बहुत सुंदर सरस कविता.....वाह्ह्ह👌

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  2. बहुत सुन्दर....
    वाह!!!

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  3. बहुत बहुत आभार आदरणीया दिव्या जी। शुक्रगुज़ार हूँ।

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