एक पुरानी ग़ज़ल का मतला और कुछ शेर
कुछ ख़ामोशी जकड़े-जकड़े
कुछ घबराए उखड़े-उखड़े
ख़ूब सताए आज जुदाई
होता है दिल टुकड़े-टुकड़े
सहमा सहमा सारा मौसम
और नज़ारे उजड़े -उजड़े
मोर पपीहा गुमसुम-गुमसुम
कोयल के सुर उखड़े-उखड़े
टीस जिया की दूर करो अब
मत बैठो जी अकड़े-अकड़े
-हिया 'हया'
सुन्दर।
ReplyDeleteवाह, क्या खूब ग़ज़ल है.
ReplyDeleteGreat
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति ,आभार।
ReplyDeleteबैठो मत अब अकड़े अकड़े ... क्या बात है ...
ReplyDelete