यूँ न दिल को उछालकर चलिए।
रास्ते देख-भालकर चलिए।।
वक़्त की देखिए नज़ाकत को।
ख़ुद को सांचे में ढाल कर चलिए।।
आज आना है उनको महफ़िल में।
आप दिल को सँभालकर चलिए।।
हुस्न की हैं नुमाइशें लगती।
आप ख़ुद को निखार कर चलिए।।
पार जाने की चाह हो दिल में।
नाव दरिया में डालकर चलिए।।
आपसे हम गिला नहीं करते।
आप भी बात टालकर चलिए।
-श्रीमती आशा शैली
वाह..
ReplyDeleteबेहतरान ग़जल पढ़वाई
आभार
सादर
वाह..
ReplyDeleteबेहतरीन ग़जल पढ़वाई
आभार
सादर
बहुत खूब
ReplyDeleteवाह।
ReplyDelete