नर नारी का भेद केवल,
रूप रंग का भेद नहीं।
नर नारी की समानता,
आदर है,कोई खेद नहीं॥
हर नर में निहित है,
नारी सामान संवेदना।
हर नारी में निहित है,
पुरषार्थ की चेतना॥
अर्धनारीश्वर रूप है,
उदाहरण इस रूप का।
सम्मान हो एक दूजे का,
आदर हो इस स्वरूप का॥
अहंकार के जाल में,
उलझा यह समाज है।
पौरुष और नारीत्व का,
भेद ही विनाश है॥
सृष्टि के चक्र का,
यह दोनों आधार हैं।
साथ हों तो मंज़िलें,
पृथक तो बेकार हैं॥
-लवनीत मिश्र
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