क्या जाने कब कहाँ से चुराई मेरी ग़ज़ल
उस शोख ने मुझी को सुनाई मेरी ग़ज़ल
पूछा जो मैंने उस से के है कौन खुश-नसीब
आँखों से मुस्कुरा के लगाई मेरी ग़ज़ल
एक -एक लफ्ज़ बन के उड़ा था धुंआ -धुंआ
उस ने जो गुनगुना के सुनाई मेरी ग़ज़ल
हर एक शख्स मेरी ग़ज़ल गुनगुनाएं हैं
‘ राही ’ तेरी जुबां पे ना आई मेरी ग़ज़ल
- सईद राही
वाह्ह्ह...शानदार गज़ल।
ReplyDeleteवाह।
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुंदर ग़ज़ल। wahh
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 15 अक्टूबर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत ख़ूब !
ReplyDeleteबढ़िया ग़ज़ल
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर....
ReplyDeleteबेहतरीन गजल !
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