Sunday 1 October 2017

धन्यवाद....अमित जैन 'मौलिक'

फिर वही सब याद आ रहा है।
तुम मुझे ग़लत न समझना
मैं करता हूँ कोशिश
तुम्हें भुलाने की,
अब कुछ अहद ही नहीं
तुम्हें आज़माने की।
भुला दूँगा, 
यकीन भी आ रहा है
पर ना जाने क्या बचा है
जो मुझे बहुत सता रहा है

हाँ याद आया!
तुम्हें धन्यवाद कहना है।
क्षमा करना कभी कहा ही नही
अपना पराये का कोई
ख़्याल मन मे रहा ही नहीं
हाँ, मुझे अब 
अपना बर्ताव बदलना है।
बदल लूंगा, 
यकीन भी आ रहा है
पर ना जाने क्या बचा है
जो मुझे बहुत सता रहा है।
-अमित जैन 'मौलिक'

5 comments:

  1. बहुत बहुत आभार आपका दिव्या जी।

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  2. वाह्ह्ह....सुंदर रचना। अस्थिर चित,अनमने से मन की टीस का चित्रण।

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  3. वाह....
    बेहतरीन....
    सादर...

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  4. वाह....
    बेहतरीन....
    सादर...

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