पीयोगे कैसे निग़ाहों से पिलाई जाती है
शराब जैसे मैकदों में लुटाई जाती है।
तू होश में भी न पहचान पाई एक हमको
प्यास तो आँखों के प्याली से बुझाई जाती है।
तू रोज-रोज ही कहती पियों न आँखों से
दरिया बनके तू दिल में समाई जाती है।
डूबें है रात से आँखों के तेरे अंजुमन में
ये बातें चाँद-सितारों से छुपाई जाती है।
करो तो साँसों पे एतबार अब नहीं होता
सदाए दिल को धड़कन से सुनाई जाती है।
रस्में जहाँ की कोई कैसे अब निभायेगा
ख़्याल ओ ख़्वाब की दुनिया बसाई जाती है।
हमें तो खुद ही पिलाने यूँ आँखें आई थी
ऐसे ही प्यासे की प्यास "नीतू" बढ़ाई जाती है।
-नीतू राठौर
Beautiful Poem, well written by nitu
ReplyDeleteवाह्ह...लाज़वाब👌
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteसुन्दर!
ReplyDeleteबहुत खूब। wahhh
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