शाम आयी तेरी यादों के सितारे निकले
रंग ही ग़म के नहीं नक़्श भी प्यारे निकले
रक्स जिनका हमें साहिल से बहा लाया था
वो भँवर आँख तक आये तो क़िनारे निकले
वो तो जाँ ले के भी वैसा ही सुबक-नाम रहा
इश्क़ के बाद में सब जुर्म हमारे निकले
इश्क़ दरिया है जो तैरे वो तिहेदस्त रहे
वो जो डूबे थे किसी और क़िनारे निकले
धूप की रुत में कोई छाँव उगाता कैसे
शाख़ फूटी थी कि हमसायों में आरे निकले
-परवीन शाकिर
बहुत खूब
ReplyDeleteइश्क़ के बाद में सब जुर्म हमारे निकले
लाजवाब
सादर
बहुत खूब
ReplyDeleteलाज़वाब प्रस्तुति...👌👌
ReplyDeleteवाह।
ReplyDeleteवाह ! क्या बात है ,बहुत ख़ूब !
ReplyDeleteएक से बढ़कर शेरों से भरी रचना |
ReplyDeleteलाजवाब गजल....
ReplyDeleteवो तो जाँ ले के भी वैसा ही सुबक-नाम रहा
ReplyDeleteइश्क़ के बाद में सब जुर्म हमारे निकले...
बढ़िया !