Wednesday, 4 October 2017

इश्क़ के बाद में सब जुर्म हमारे निकले......परवीन शाकिर

शाम आयी तेरी यादों के सितारे निकले
रंग ही ग़म के नहीं नक़्श भी प्यारे निकले

रक्स जिनका हमें साहिल से बहा लाया था
वो भँवर आँख तक आये तो क़िनारे निकले

वो तो जाँ ले के भी वैसा ही सुबक-नाम रहा
इश्क़ के बाद में सब जुर्म हमारे निकले

इश्क़ दरिया है जो तैरे वो तिहेदस्त रहे
वो जो डूबे थे किसी और क़िनारे निकले

धूप की रुत में कोई छाँव उगाता कैसे
शाख़ फूटी थी कि हमसायों में आरे निकले
-परवीन शाकिर

8 comments:

  1. बहुत खूब
    इश्क़ के बाद में सब जुर्म हमारे निकले
    लाजवाब
    सादर

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  2. लाज़वाब प्रस्तुति...👌👌

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  3. वाह ! क्या बात है ,बहुत ख़ूब !

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  4. एक से बढ़कर शेरों से भरी रचना |

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  5. लाजवाब गजल....

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  6. वो तो जाँ ले के भी वैसा ही सुबक-नाम रहा
    इश्क़ के बाद में सब जुर्म हमारे निकले...
    बढ़िया !

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