Sunday, 8 October 2017

यायावर सा सूर्य.....डॉ. इन्दिरा गुप्ता


उदया चल से 
अस्ताचल तक 
स्वर्ण सूर्य का 
गमन गगन !

नील पथ 
सिंदूरी आचमन 
चलता रथ 
सुन चिरई शगुन !

चक्र भ्रमण 
करे अनवरत 
अष्ट भाव के 
रख अश्व संग !

रुके ना पल भर 
चले निरंतर 
अकिंचन नहीँ 
रख प्रयास कंचन !

यायावर सा 
द्रुत पथगामी 
शनै: शनै:
पूरित कर लंघन !

मलय पवन 
शीतल अति चंचल 
उष्ण स्वेद बिन्दु 
से सिंचित !

चहुं दिशा 
हुँकारे पल पल 
चलित भाव 
रुकना नहीँ सम्भव !

कर्म रथ
हो आरुढित 
सम भाव मन 
सारथी चुन कर !!

-डॉ. इन्दिरा गुप्ता
साभारः अमित जैन 'मौलिक'

3 comments:

  1. बहुत सुंदर प्रिय इन्दिरा जी की लालित्य पूर्ण कविता।

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  2. मलय पवन
    शीतल अति चंचल
    उष्ण स्वेद बिन्दु
    से सिंचित !

    अद्भुत। wahhh । सुंदर। सुंदरम। सुंदरतम। चकित करती लेखनी।

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