उदया चल से
अस्ताचल तक
स्वर्ण सूर्य का
गमन गगन !
नील पथ
सिंदूरी आचमन
चलता रथ
सुन चिरई शगुन !
चक्र भ्रमण
करे अनवरत
अष्ट भाव के
रख अश्व संग !
रुके ना पल भर
चले निरंतर
अकिंचन नहीँ
रख प्रयास कंचन !
यायावर सा
द्रुत पथगामी
शनै: शनै:
पूरित कर लंघन !
मलय पवन
शीतल अति चंचल
उष्ण स्वेद बिन्दु
से सिंचित !
चहुं दिशा
हुँकारे पल पल
चलित भाव
रुकना नहीँ सम्भव !
कर्म रथ
हो आरुढित
सम भाव मन
सारथी चुन कर !!
-डॉ. इन्दिरा गुप्ता
साभारः अमित जैन 'मौलिक'
बहुत सुंदर प्रिय इन्दिरा जी की लालित्य पूर्ण कविता।
ReplyDeleteमलय पवन
ReplyDeleteशीतल अति चंचल
उष्ण स्वेद बिन्दु
से सिंचित !
अद्भुत। wahhh । सुंदर। सुंदरम। सुंदरतम। चकित करती लेखनी।
Indira Ji, Poem is very great
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