फ़ितरत बदल रही है मेरे, दिल की आजकल
है कौन जिसकी चल रही है, ख़ूब आजकल।
क्यों आफ़ताब इश्क़, सिखाता है चाँद को
क्यों धूप चांदनी से, मिल रही है आजकल।
दिलशाद वाकये, चमन में फिर से हो रहे
खुश्बू फ़िज़ा में ख़ूब, घुल रही है आजकल।
किसकी हँसी में मिल के, हवा नज़्म हो गई
किसकी ग़ज़ल में शाम, ढल रही है आजकल।
ये कौन चल रहा है मेरे, नाम खार पर
पाँवों में चुभन तेज, चल रही है आजकल।
शोला फिशां हूँ ख्वाहिशे, आतिश बना गया
मेरी ग़ज़ल को स्थान देने के लिए बहुत बहुत आभार धन्यवाद आदरणीया दिव्या जी
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार ०९ नवंबर २०१७ को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"
ReplyDeleteलाज़वाब...बहुत सुंदर
ReplyDeleteहर शेर लाज़वाब.आपकी गज़लें लाज़वाब होती हैं. बहुत सुंदर रचना.
ReplyDeleteसादर
वाह
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteलाजवाब गजल....
क्यों आफ़ताब इश्क़, सिखाता है चाँद को
ReplyDeleteक्यों धूप चांदनी से, मिल रही है आजकल ...
क्या बात है ... आफताब चाँद को या चाँद आफताब को प्रेम करना सिखाये ... पर ये मिलन प्रेम के लिए है ...