Saturday, 16 September 2017

सोचा इक रोज़ तुझे कह दूं.....अमित जैन "मौलिक"


ये इबादत है मुझे, हद से गुज़र जाने दे
प्यार करने दे मुझे, प्यार में मर जाने दे

एक अरसे से मेरे अंदर इक समंदर है
आज न रोक मुझे, टूट के बह जाने दे

गम न कर यार मेरे मैंने, दुआ मांगी है
चाँद होगा तेरे दामन में, असर आने दे

यूँ तमाशा न बना, मेरी तमन्नाओं का
थोड़ा सा और करीब आ, या मुझे आने दे

इश्क़ है खेल नही है, जो कुछ तजुर्बा हो
सोचा इक रोज़ तुझे कह दूं, मगर जाने दे



10 comments:

  1. मेरी रचना को मान देने के लिये आपका अतुल्य आभार आदरणीया दिव्या जी। नमन

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  2. मेरी रचना को मान देने के लिये आपका अतुल्य आभार आदरणीया दिव्या जी। नमन

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  4. बहुत सुन्दर ...,

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  5. हमेशा की तरह शानदार गज़ल अमित जी।👌👌
    बहुत सुंदर है लिखा आपने।

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  6. इश्क़ है खेल नही है, जो कुछ तजुर्बा हो
    सोचा इक रोज़ तुझे कह दूं, मगर जाने दे.....
    बहुत खूबसूरत गजल ! बधाई !

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