Tuesday, 19 September 2017

देखिए हो गई बदनाम मसीहाई भी.... कमर ज़लालवी

देखिए हो गई बदनाम मसीहाई भी 
हम न कहते थे कि टलती है कहीं आई भी 

हुस्न ख़ुद्दार हो तो बाइस-ए-शोहरत है ज़रूर 
लेकिन इन बातों में हो जाती है रुस्वाई भी 

सैंकड़ों रंज ओ अलम दर्द ओ मुसीबत शब-ए-ग़म 
कितनी हंगामा-तलब है मिरी तन्हाई भी 

तुम भी दीवाने के कहने का बुरा मान गए 
होश की बात कहीं करते हैं सौदाई भी 

बाल ओ पर देख तो लो अपने असीरान-ए-क़फ़स 
क्या करोगे जो गुलिस्ताँ में बहार आई भी 

पाँव वहशत में कहीं रुकते हैं दीवानों के 
तोड़ डालेंगे ये ज़ंजीर जो पहनाई भी 

ऐ मिरे देखने वाले तिरी सूरत पे निसार 
काश होती तेरी तस्वीर में गोयाई भी 

ऐ 'क़मर' वो न हुई देखिए तक़दीर की बात 
चाँदनी रात जो क़िस्मत से कभी आई भी 
-कमन ज़लालवी

3 comments:

  1. शुभप्रभात।
    ख़ूबसूरत जज़्बातों को बयां करती बेहतरीन ग़ज़ल। वाह !

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  2. बेहतरीन ग़ज़ल
    सादर

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  3. शुक्रिया यह गजल साझा करने के लिए !

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