देखिए हो गई बदनाम मसीहाई भी
हम न कहते थे कि टलती है कहीं आई भी
हुस्न ख़ुद्दार हो तो बाइस-ए-शोहरत है ज़रूर
लेकिन इन बातों में हो जाती है रुस्वाई भी
सैंकड़ों रंज ओ अलम दर्द ओ मुसीबत शब-ए-ग़म
कितनी हंगामा-तलब है मिरी तन्हाई भी
तुम भी दीवाने के कहने का बुरा मान गए
होश की बात कहीं करते हैं सौदाई भी
बाल ओ पर देख तो लो अपने असीरान-ए-क़फ़स
क्या करोगे जो गुलिस्ताँ में बहार आई भी
पाँव वहशत में कहीं रुकते हैं दीवानों के
तोड़ डालेंगे ये ज़ंजीर जो पहनाई भी
ऐ मिरे देखने वाले तिरी सूरत पे निसार
काश होती तेरी तस्वीर में गोयाई भी
ऐ 'क़मर' वो न हुई देखिए तक़दीर की बात
चाँदनी रात जो क़िस्मत से कभी आई भी
-कमन ज़लालवी
शुभप्रभात।
ReplyDeleteख़ूबसूरत जज़्बातों को बयां करती बेहतरीन ग़ज़ल। वाह !
बेहतरीन ग़ज़ल
ReplyDeleteसादर
शुक्रिया यह गजल साझा करने के लिए !
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