जिसके स्वागत में,
नभ ने बरसा दी है जोन्हियां सभी
और बड़ ने छांह बिछा डाली है
वह तू ऊषा, मेरी आंखों पर तेरा स्वागत है
पत्तों के श्यामता के द्वीप
डुबोते हुए हुस्न-हिना के
गंध-ज्वार-सी हरित-श्वेत जो उदय हुई है
वह तू ऊषा, मेरी आंखों पर तेरा स्वागत है
एक वस्त्र चंपई रेशमी,उंगली में नग-भर पहने
स्नानालय की धरे सिटकनी
वह तू ऊषा, मेरी आंखों पर तेरा स्वागत है
क्षण-भर को दिख गई
दूसरे घर में जा छिपने के पहले
अपने पति से भी शरमाकर
वह तू ऊषा, मेरी आंखों पर तेरा स्वागत है
-मदन वात्स्यायन
....अहा जिंदगी
बहुत खूबसूरत रचना👌👌
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteलाजवाब प्रस्तुति.....
ReplyDeleteवाह!!!