Monday, 18 September 2017

रात बितायी भोर की ख़ातिर....कैलाश झा 'किंकर'

"रात बितायी भोर की ख़ातिर
कुछ तो कुछ इंजोर की ख़ातिर

कौन जमा करता है दौलत
दीन-हीन ,कमजोर की ख़ातिर

झगड़ा-झंझट ,खून-खराबा
सब होते बलजोर की ख़ातिर

दूर चले जाते हैं अपने
बस केवल इक ठोर की ख़ातिर

कोई भी इस ओर नहीं है
लोग खड़े उस ओर की ख़ातिर"

-कैलाश झा 'किंकर'

3 comments:

  1. वाह्ह्ह...लाज़वाब👌

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  2. कोई भी इस ओर नहीं है
    लोग खड़े उस ओर की ख़ातिर।

    बहुत उम्दा रचना। शानदार।।

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