बैठी थी आज
लिखने को कुछ
पर जो कुछ
कहता था मन मेरा
और कलम मेरी
लिखती ही नही..
मेरे मन की बात
करती थी मनमानी
कलम मेरी..
और तो और..
उँगलियाँ मेरी..
करते करते टाईप
बहक-बहक सी
जाती थी..
झिड़कने पर
कहती थी उँगलिया..
जो मेरे मन में आ रही..
जा रही उसी अक्षर पर..
तुझे क्या..
रहना सुधारते..
बाद टाईप होने के..
करने दे टाईप मुझे ..
मेरे मन की...
छोड़ दी थक-हारकर
आधा अधूरा..
बोली अपने आप से...
चलूँ दीदी के पास...
आज दिन तीसरा है
मातारानी का...
कर आऊँ दर्शन दीदी के.....
वो भी तो माँ है मेरी..
बहुत ही सुंदर रचना। माँदुरर्गा की कृपा आप पर बनी रहे।
ReplyDeleteमाँ दुर्गा की कृपा आप पर बनी रहे।
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteसुदर कविता है
ReplyDeleteबहुत सुंदर। वाह
ReplyDeleteदूसरी रचना परिष्कृत है सखी,मन की उलझन के बीच पवित्रता का भाव अत्यंत मनभावन है।मेरी शुभकामनाएँ स्वीकार करें।
ReplyDeleteकर आऊँ दर्शन दीदी के
ReplyDeleteवो भी तो माँ हैं मेरी.....!!!!
इतना सम्मान!!!
भावविभोर करने वाली रचना....
इसी सम्मान के आशीष में मंजिल है .....आप मंजिल के बहुत करीब हैं...
बेहतरीन !!!
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना
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