Friday, 15 September 2017

'कौन है'......अमित जैन "मौलिक"

कंपकंपाती भौंहें
थरथराता ललाट
नशीली आँखें
मुंदी पलकें
पलकों की 
बेसुध कोरें
कोरों में नमी
नमी में तसव्वुर
तसव्वुर में मुस्कराता 
कौन है, जो मौन है

सघन-घने 
सुरमई गेसू 
गेसुओं की चन्द 
उन्मत लटें
टोली से बाहर 
उतर आती हैं 
कपोलों पर
किलोलें करने
कपोलों पर लज़्ज़ा
फैली है हया
हया में लाली
लालियों में सुरूर
इस सुरूर में 
कभी आता कभी जाता
कौन है, जो मौन है

रेशमी पल्लू
पल्लू में बैचेन वक्ष 
असंतुलित सा होता
छिन्न भिन्न 
तालमेल से दूर
स्वांस के साथ
स्वांस के विरुद्ध
स्वांसों में घुला चन्दन
जिसकी तासीर से
लडखडाते जज़्बात
विवश अधीरता
इस अधीरता में
मदमदाता समीप आता 
कौन है, जो मौन है

सिंदूरी हाँथ 
हाथों में बंधी मुट्ठियां
मुट्ठियों में सिमटी 
सुघड़ अंगुलियां
अंगुलियों के पोरों से
लिपटीं अंगूठियां 
अंगूठियों के नगीनों में
खिलता रौशन नूर
इस नूर में खिलखिलाता
कौन है, जो मौन है

सुडौल पैर
मादक पिंडलियां
पिंडलियों में बंधी पायल
पायल में सितारों की 
गुलालों सी रंगीनियां
बनाती हैं रंगोलियाँ
रचती हैं सौभाग्य 
प्रत्येक, दायरे से 
बाहर आने को उतारू
चहलकदमी के साथ
इन विवश कदमों की
आहटों में सरसराता
गुनगुनाता निकट आता
कौन है, जो मौन है।

अमित जैन "मौलिक"

6 comments:

  1. रचना को मान देने के लिये आपका बहुत बहुत आभार धन्यवाद आदरणीया दिव्या जी।

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  2. जरूरी नहीं है कह देना सब कुछ हर समय
    मौन रहना बहुत कुछ कह देता है किसी समय ।

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  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 16 सितम्बर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. आदरणीय मौलिक जी आपका मौलिक चिंतन अत्यंत प्रभावशाली है जो वाचक को बांधकर रखता है।
    ऐसी रचनाएं कम ही पढ़ाने को मिलती हैं पाठकों को।
    उत्कृष्ट रचना।
    बधाई एवं शुभकामनाऐं।

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