अब कभी तेरी बेबसी का, सबब नहीं पूछेंगे
चलो छोड़ो जाने भी दो, अब हम नही रूठेंगे
मेरा ईमान महज़ इसी शर्त पर, मुनहसर नही है
कि जब भी लूटेंगे सिर्फ, चाँद सितारे ही लूटेंगे
चलो न वहीं से शुरु करते हैं, हम हमारे तबसिरे
कि कभी तुम खैरियत लो, कभी हम हाल पूछेंगे
मैं हसरतों के हाथों मज़बूर हूँ, तो क्या हुआ
-अमित जैन 'मौलिक'
वाह...
ReplyDeleteलाजवाब ग़ज़ल
सादर
बहुत बहुत आभार दी जी। सादर प्रणाम। आपसे वार्तालाप हो गया इससे बेहतर शुभ, प्रभात नही हो सकता।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार धन्यवाद आदरणीया दिव्या जी। कृतज्ञ हूँ आपकी इस दयालुता के लिये। मैं बहुत आल्हादित हूँ आप सब उत्कृष्ट सुधीजनों के बीच में स्थान पाकर। नमन
ReplyDeleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteवाह्ह्ह...शानदार बहुत सुंदर गज़ल अमित जी की।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय जोशी जी। विनम्र आभार
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया श्वेता जी। बहुत आभार
ReplyDeleteजी दी जी। रचना को इतना मान देने के लिये अतुल्य आभार
ReplyDeleteलाज़वाब गज़ल अमित जी.बहुत सुंदर अभिव्यक्ति. सादर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार धन्यवाद अपर्णा जी।
Deleteजो वडा किया वो निभाना पढ़ेगा ...
ReplyDeleteऔर वादों से पीछे हटना भी नहीं चाहिए ... अच्छी अभिव्यक्ति ...
सराहना के लिये बहुत बहुत आभार धन्यवाद आपका नासवा जी।
Deleteबहुत ही सुन्दर....
ReplyDeleteलाजवाब गजल...
सराहना के लिये आपका बहुत बहुत आभार धन्यवाद आदरणीया सुधा जी।
Deleteबहुत सुन्दर रचना ,आभार "एकलव्य"
ReplyDeleteवाह अतिउत्तम रचना
ReplyDelete।मैं हसरतों के हाथों मज़बूर हूँ, तो क्या हुआ
यकीन कर टूट जायेंगे, मगर वादों से नहीं टूटेंगे