Wednesday 13 September 2017

चलो न वहीं से शुरु करते हैं....अमित जैन 'मौलिक'

अब कभी तेरी बेबसी का, सबब नहीं पूछेंगे
चलो छोड़ो जाने भी दो, अब हम नही रूठेंगे

मेरा ईमान महज़ इसी शर्त पर, मुनहसर नही है
कि जब भी लूटेंगे सिर्फ, चाँद सितारे ही लूटेंगे

चलो न वहीं से शुरु करते हैं, हम हमारे तबसिरे
कि कभी तुम खैरियत लो, कभी हम हाल पूछेंगे

मैं हसरतों के हाथों मज़बूर हूँ, तो क्या हुआ
यकीन कर टूट जायेंगे, मगर वादों से नहीं टूटेंगे
-अमित जैन 'मौलिक'

16 comments:

  1. वाह...
    लाजवाब ग़ज़ल
    सादर

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  2. बहुत बहुत आभार दी जी। सादर प्रणाम। आपसे वार्तालाप हो गया इससे बेहतर शुभ, प्रभात नही हो सकता।

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  3. बहुत बहुत आभार धन्यवाद आदरणीया दिव्या जी। कृतज्ञ हूँ आपकी इस दयालुता के लिये। मैं बहुत आल्हादित हूँ आप सब उत्कृष्ट सुधीजनों के बीच में स्थान पाकर। नमन

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  4. वाह्ह्ह...शानदार बहुत सुंदर गज़ल अमित जी की।

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  5. बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय जोशी जी। विनम्र आभार

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  6. बहुत बहुत शुक्रिया श्वेता जी। बहुत आभार

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  7. जी दी जी। रचना को इतना मान देने के लिये अतुल्य आभार

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  8. लाज़वाब गज़ल अमित जी.बहुत सुंदर अभिव्यक्ति. सादर

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    1. बहुत बहुत आभार धन्यवाद अपर्णा जी।

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  9. जो वडा किया वो निभाना पढ़ेगा ...
    और वादों से पीछे हटना भी नहीं चाहिए ... अच्छी अभिव्यक्ति ...

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    1. सराहना के लिये बहुत बहुत आभार धन्यवाद आपका नासवा जी।

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  10. बहुत ही सुन्दर....
    लाजवाब गजल...

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    1. सराहना के लिये आपका बहुत बहुत आभार धन्यवाद आदरणीया सुधा जी।

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  11. बहुत सुन्दर रचना ,आभार "एकलव्य"

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  12. वाह अतिउत्तम रचना
    ।मैं हसरतों के हाथों मज़बूर हूँ, तो क्या हुआ
    यकीन कर टूट जायेंगे, मगर वादों से नहीं टूटेंगे

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