उनके दीदार की उम्मीद बस लगाए हुए
कब से बैठे हैं उनकी राह में हम आए हुए।
दिल में जलते हुए चरागो को हवा देते है
कि अपनी ज़िद से बैठे हैं शम्आ जलाए हुए ।
मेरी हरसत का आइना सवाल करता है
ये किसका चहरा हैं आप चहरे मे छुपाए हुए ।
हमें खबर है मोहब्बत यहां नहीं मिलती
उम्र गुजरेगी युंही उम्मीद ए दिल लगाए हुए।
रह गुज़र है ये उसकी यहीं मंज़िल भी है
फिर भी गुजरी हैं सदियां उन्हें न आए हुए।
नब्ज थमने लगी है 'जानिब' धुआं सांसे है
फकीरी ज़िंदा है मगर उन पे सब लुटाए हुए ।
-पावनी दीक्षित 'जानिब'
बेहतरीन ग़ज़ल
ReplyDeleteआभार पढ़वाने के लिए
सादर
वाह्ह....बहुत लाज़वाब गज़ल।
ReplyDeleteशेयर करने के लिए
सस्नेह आभार।
बहुत सुंदर
ReplyDeleteसुदर कविता है
ReplyDeleteसुंदर ग़ज़ल। वाह
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