आज से सदियों पहले
शायद सृष्टि के समय
मैंने दिल की किताब से
कुछ अक्षर चुराये।
चोरी तो चोरी है - कभी पकड़ी ही जायेगी
घबराई सी मैं
उन अक्षरों को लेकर भटकती रही
फिर मैंने वो अक्षर
एक कली में छुपा दिए
अगले ही दिन
वो कली चटकी और फूल बनी
अब फिर डर लगा मुझे
सबको पता चल जायेगा
वहाँ से अक्षर उठा कर
मैंने फूल पर रख दिए
थोड़ी देर में ही वहाँ
भंवरे गुनगुनाने लगे
फिर वो अक्षर मैंने
चुपके से उठाये - और
आसमान में उछाल दिए
ये सब क्या हो गया
मैंने तो सिर्फ ढाई अक्षर ही चुराये थे
ये तो लाखों तारे बन गए
काश, मैं वो अक्षर अपने
दिल में ही रख लेती|
-रश्मि भटनागर
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद ब्लॉग पर 'शुक्रवार ' ०५ जनवरी २०१८ को लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
ReplyDeleteबहुत ख़ूब ...
ReplyDeleteये शाई आखर हाई तो प्रेम है जो shrishti की चलाते हैं ...
मै वो अक्षर दिल में ही रख लेती....बहुत सुंदर
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए बड़े हर्ष का अनुभव हो रहा है कि ''लोकतंत्र'' संवाद ब्लॉग 'मंगलवार' ९ जनवरी २०१८ को ब्लॉग जगत के श्रेष्ठ लेखकों की पुरानी रचनाओं के लिंकों का संकलन प्रस्तुत करने जा रहा है। इसका उद्देश्य पूर्णतः निस्वार्थ व नये रचनाकारों का परिचय पुराने रचनाकारों से करवाना ताकि भावी रचनाकारों का मार्गदर्शन हो सके। इस उद्देश्य में आपके सफल योगदान की कामना करता हूँ। इस प्रकार के आयोजन की यह प्रथम कड़ी है ,यह प्रयास आगे भी जारी रहेगा। आप सभी सादर आमंत्रित हैं ! "लोकतंत्र" ब्लॉग आपका हार्दिक स्वागत करता है। आभार "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 07 फरवरी 2022 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
वाकई बहुत ही खूबसूरत
ReplyDeleteढाई अक्षर ही तो लाखों तारों के बराबर हैं ।बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
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