Monday, 13 July 2020

एक बेहूदा सवाल आया है - दुष्यंत कुमार


जाने किस किस का ख़याल आया है
इस समुंदर में उबाल आया है

एक बच्चा था हवा का झोंका
साफ़ पानी को खंगाल आया है

एक ढेला तो वहीं अटका था
एक तू और उछाल आया है

कल तो निकला था बहुत सज-धज के
आज लौटा तो निढाल आया है

ये नज़र है कि कोई मौसम है
ये सबा है कि वबाल आया है

हम ने सोचा था जवाब आएगा
एक बेहूदा सवाल आया है
- दुष्यन्त कुमार

Sunday, 12 July 2020

साँप के आलिंगनों में मौन चन्दन तन पड़े हैं

ये असंगति जिन्दगी के द्वार सौ-सौ बार रोई
बांह में है और कोई चाह में है और कोई

साँप के आलिंगनों में
मौन चन्दन तन पड़े हैं
सेज के सपनों भरे कुछ
फूल मुर्दों पर चढ़े हैं

ये विषमता भावना ने सिसकियाँ भरते समोई
देह में है और कोई, नेह में है और कोई

स्वप्न के शव पर खड़े हो
मांग भरती हैं प्रथाएं
कंगनों से तोड़ हीरा
खा रहीं कितनी व्यथाएं

ये कथाएं उग रही हैं नागफन जैसी अबोई
सृष्टि में है और कोई, दृष्टि में है और कोई

जो समर्पण ही नहीं हैं
वे समर्पण भी हुए हैं
देह सब जूठी पड़ी है
प्राण फिर भी अनछुए हैं

ये विकलता हर अधर ने कंठ के नीचे सँजोई
हास में है और कोई, प्यास में है और कोई
- भारत भूषण

Monday, 6 July 2020

ख़्वाब में आते हैं चले जाते हैं ....अब्बास ताबिश

मेरी तन्हाई बढ़ाते हैं चले जाते हैं 
हँस तालाब पे आते हैं चले जाते हैं 

इस लिए अब मैं किसी को नहीं जाने देता 
जो मुझे छोड़ के जाते हैं चले जाते हैं 

मेरी आँखों से बहा करती है उन की ख़ुश्बू 
रफ़्तगाँ ख़्वाब में आते हैं चले जाते हैं 

शादी-ए-मर्ग का माहौल बना रहता है 
आप आते हैं रुलाते हैं चले जाते हैं 

कब तुम्हें इश्क़ पे मजबूर किया है हम ने 
हम तो बस याद दिलाते हैं चले जाते हैं 

आप को कौन तमाशाई समझता है यहाँ 
आप तो आग लगाते हैं चले जाते हैं 

हाथ पत्थर को बढ़ाऊँ तो सगान-ए-दुनिया 
हैरती बन के दिखाते हैं चले जाते हैं 
-अब्बास ताबिश

Monday, 22 June 2020

अपाहिज व्यथा ...दुष्यंत कुमार


अपाहिज व्यथा को सहन कर रहा हूँ,
तुम्हारी कहन थी, कहन कर रहा हूँ ।

ये दरवाज़ा खोलो तो खुलता नहीं है,
इसे तोड़ने का जतन कर रहा हूँ ।

अँधेरे में कुछ ज़िन्दगी होम कर दी,
उजाले में अब ये हवन कर रहा हूँ ।

वे सम्बन्ध अब तक बहस में टँगे हैं,
जिन्हें रात-दिन स्मरण कर रहा हूँ ।

तुम्हारी थकन ने मुझे तोड़ डाला,
तुम्हें क्या पता क्या सहन कर रहा हूँ ।

मैं अहसास तक भर गया हूँ लबालब,
तेरे आँसुओं को नमन कर रहा हूँ ।

समालोचको की दुआ है कि मैं फिर,
सही शाम से आचमन कर रहा हूँ ।
-दुष्यन्त कुमार

Sunday, 21 June 2020

बारिश आने से पहले...गुलज़ार

बारिश आने से पहले
बारिश से बचने की तैयारी जारी है

सारी दरारें बन्द कर ली हैं
और लीप के छत, अब छतरी भी मढ़वा ली है

खिड़की जो खुलती है बाहर
उसके ऊपर भी एक छज्जा खींच दिया है

मेन सड़क से गली में होकर, दरवाज़े तक आता रास्ता
बजरी-मिट्टी डाल के उसको कूट रहे हैं!

यहीं कहीं कुछ गड़हों में
बारिश आती है तो पानी भर जाता है
जूते पांव, पांएचे सब सन जाते हैं

गले न पड़ जाए सतरंगी
भीग न जाएं बादल से

सावन से बच कर जीते हैं
बारिश आने से पहले
बारिश से बचने की तैयारी जारी है!!
-गुलज़ार

Friday, 19 June 2020

जायका बदलिए...दिव्या


हाइकु सत्रह (17) वर्णों में लिखी जाने वाली सबसे छोटी कविता है। इसमें तीन पंक्तियाँ रहती हैं। प्रथम पंक्ति में 5 वर्ण दूसरी में 7 और तीसरी में 5 वर्ण रहते हैं।
संयुक्त वर्ण भी एक ही वर्ण गिना जाता है, जैसे (सुगन्ध) शब्द में तीन वर्ण हैं-(सु-1, ग-1, न्ध-1)। तीनों वाक्य अलग-अलग होने चाहिए। अर्थात् एक ही वाक्य को 5,7,5 के क्रम में तोड़कर नहीं लिखना है। बल्कि तीन पूर्ण पंक्तियाँ हों।

अनेक हाइकुकार एक ही वाक्य को 5-7-5 वर्ण क्रम में तोड़कर कुछ भी लिख देते हैं और उसे हाइकु कहने लगते हैं। यह सरासर गलत है, और हाइकु के नाम पर स्वयं को छलावे में रखना मात्र है।

है एक बला
नज़र भी मिला ले
कभी कभार




एक बला है नज़र भी
कभी मिल जाती है नज़र
और कभी लग भी जाती है

नज़र ....कोई बात कर लेता है
मिलाकर नज़र 

तो कोई निकल जाता है
चुरा कर नज़र...
कभी किसी को 
आ जाती है नज़र
तो कभी गुम हो जाती है नज़र
कोई डाल लेता है नज़र
और देख भी लेता है कोई

नज़र भर
कोई गा लेता है...
नज़रों के गीत
बड़ा अनोखा सा संम्बध है
नज़र का ज़िगर से

19 June

19 June 2020