Monday, 30 October 2017

शब्द

ऐसा लग रहा है
ब्लॉग मे सालों बाद आई हूँ
आती भी नहीं
एक कविता पढ़ी मैं आज...
प्रतिक्रिया लिखते-लिखते 
वहीं रम गई...
आप भी पढ़िए वो प्रतिक्रिया..
जो ढल गई कविता सी...
....................
कौन कहता है
कालातीत हो जाते हैं
शब्द..
नहीं बनते इतिहास कभी
ये शब्द...
मान भी
अपमान भी
व्यंग भी 
और तंज भी
मुखर होते हैं
इन्हीं शब्दों से...
यही वे शब्द हैं
उपयोग किया है
हरिवंश राय ने
शौकत थानवी ने भी
अपनाया इसे...
इन्हीं शब्दों से
हंसाया जग तो
काका हाथरसी ने....
इन्हीं शब्दों को
अपनाएगी
आने वाली पीढ़िया भी
भाषा चाहे जो भी हो...
शब्द, शब्द है
और रहेंगे भी
शब्द ही
इति शुभम्

Tuesday, 24 October 2017

शुतुर्मुर्ग..............भास्कर चौधुरी



मैंने बंद कर ली आँखें
और सोचा शुतुर्मुर्ग की तरह
कि अंधी है दुनिया

जम्हाई ली मैंने
और सोचा चिड़ियाघर में
कैदी शेर की तरह
उबासियाँ ले रही है सारी दुनिया

चुप हो गया मैं
और सोचा सीतनिद्रा में पड़े
ध्रुवी भालू की तरह
कि इन दिनों ऐसी ही है दुनिया... !!
-भास्कर चौधुरी

Saturday, 21 October 2017

28 नक्षत्रों पर हाइकु.....प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

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सूर्य की पत्नी
साहस व शौर्य की 
माता अश्विनी।
        
यम का व्रत
ये भरणी नक्षत्र
पृथ्वी धारक।
       
किचपिचिया
षट तारा कृत्तिका
चंद्र की प्रिया।
        
मध्य प्रदेश
रोहिणी का संकेत
चंद्राभिषेक।
        
प्राण संदिग्ध
नक्षत्र का आकार
मृग का शीष।
        
नभ की आद्रा
मानो अश्रु की बूँद
चमके हीरा।
        
ईष्ट अदिति
पुनर्वसु के देव
हैं वृहस्पति।
        
पुष्प से पुष्य
चन्द्रमा करे वास
पूनम पौष्य।
        
सुप्त अश्लेषा
अधिपति हैं नाग
पूज्य देवता।
        
बल प्रदाता
सत्ता, शक्ति से जुड़ा
नक्षत्र मघा।
        
लेती लालिमा
पूर्वा फाल्गुनी प्रेम
असल जामा।
        
ये आर्यमान
उत्तरा फाल्गुनी की
मित्रता शान।
        
रवि व चंद्र
हस्त पर विराजें
बनाएँ दृढ़।
        
नक्षत्र चित्रा
शिल्प और सौंदर्य
रहस्य कला।
        
सिन्धु में सीपी
स्वाति बिन्दू की आशा
रहती प्यासी।
        
अग्नि व इंद्र
विशाखा नक्षत्र के
दिशा संयंत्र।
        
पद्म पुष्प सा
सरस्वती ध्यायिका
ये अनुराधा।
        
सात्विक ज्येष्ठा
प्राण वायु सुरक्षा
धूप व वर्षा।
        
केन्द्र ही मूल
जड़ों को पहचानें
यही उसूल।
        
अपः पूजिता
अजेय पूर्वाषाढ़ा
नक्षत्र सीता।
        
सूर्य की प्रिया
तारा गज दन्त-सा
उत्तराषाढ़ा।
        
तारा श्रवण
जग मापे त्रिपग
प्रभु वामन।
        
ध्रुव सरीखा
दिलाती है धनिष्ठा
मान प्रतिष्ठा।
        
राहू की दशा
नक्षत्र शतभिषा
शनि की पीड़ा।
        
आद्य सुंदर
पूर्वा भाद्र का पद
अजिकपद।
        
आकाश तत्व
उत्तर भाद्रपद
मृतक सर्प।
        
रेवती स्वामी
वणिक ग्रह बुध
बुद्धि दायक।
        
पूर्वाषाढ़ा में
अस्तित्व समाहित
ये अभिजित।

-.प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

Friday, 20 October 2017

होता है दिल टुकड़े-टुकड़े.....हिया 'हया'

एक पुरानी ग़ज़ल का मतला और कुछ शेर 
कुछ ख़ामोशी जकड़े-जकड़े
कुछ घबराए उखड़े-उखड़े

ख़ूब सताए आज जुदाई
होता है दिल टुकड़े-टुकड़े

सहमा सहमा सारा मौसम
और नज़ारे उजड़े -उजड़े

मोर पपीहा गुमसुम-गुमसुम
कोयल के सुर उखड़े-उखड़े

टीस जिया की दूर करो अब
मत बैठो जी अकड़े-अकड़े
-हिया 'हया'

Tuesday, 17 October 2017

कहाँ जा के ठहर जाऊँ मैं....अनिरुद्ध सिन्हा

हर  नई  रात  की आहट से ही डर जाऊँ मैं
सोचता  हूँ  कि अँधेरों  में  किधर  जाऊँ मैं

धूप की  आँच में  निकला  हूँ सफ़र में साहब
हाथ  कुछ आए  तो फिर लौट के घर जाऊँ मैं

बाद  मुद्दत  के मिला है वो मुझे  क़िस्मत से
फिर  उसी  याद  के दरिया में  उतर जाऊँ मैं

जाने किस मोड़ पे कट जाए ये साँसों की पतंग
किसको  मालूम  कहाँ  जा के ठहर  जाऊँ  मैं

जिससे  नाराज़  बहुत  होके   रहा  मैं  तनहा
वो  कभी  टूट के  मिल जाए तो मर जाऊँ  मैं

-अनिरुद्ध सिन्हा

Monday, 16 October 2017

दो दिलों के दरमियाँ..........कुंवर बेचैन

दो दिलों के दरमियाँ दीवार-सा अंतर न फेंक
चहचहाती बुलबुलों पर विषबुझे खंजर न फेंक

हो सके तो चल किसी की आरजू के साथ-साथ
मुस्कराती ज़िंदगी पर मौत का मंतर न फेंक

जो धरा से कर रही है कम गगन का फासला
उन उड़ानों पर अंधेरी आँधियों का डर न फेंक

फेंकने ही हैं अगर पत्थर तो पानी पर उछाल
तैरती मछली, मचलती नाव पर पत्थर न फेंक

यह तेरी काँवर नहीं कर्तव्य का अहसास है
अपने कंधे से श्रवण! संबंध का काँवर न फेंक
-कुंवर बेचैन

Sunday, 15 October 2017

महक लुटायेंगे...अमित जैन 'मौलिक'

अब नहीं होती हैं
मुझे गलतफहमियां
अब मुझे दिखने लगी हैं
अपनी भी कमियाँ।
तुम्हारा संग मिला
तो जाना कि जीने का 
ढंग किसे कहते हैं
फूल किसे कहते हैं
सुगंध किसे कहते हैं।
तुमने थाम ली उंगली
तो मैं भी चल पड़ा
तुम्हारे साथ।
अपने आपको
तुम्हें सौंप दिया,
तो तुमने भी रोप दिया
मुझे, अपने आसपास ही 
उपवन की क्यारी में
अब मैं भी हूँ
महकने की तैयारी में
जब खिल जायेंगे तो
महक लुटायेंगे
और सौभाग्य होगा
तो हम भी, 
कभी ना कभी
तुम्हारी तरह
गुलकंद बन जायेंगे।
-अमित जैन 'मौलिक'

Thursday, 12 October 2017

तेरी जुबां पे ना आई मेरी ग़ज़ल....सईद राही

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क्या जाने कब कहाँ से चुराई मेरी ग़ज़ल
उस शोख ने मुझी को सुनाई मेरी ग़ज़ल

पूछा जो मैंने उस से के है कौन खुश-नसीब
आँखों से मुस्कुरा के लगाई मेरी ग़ज़ल

एक -एक लफ्ज़ बन के उड़ा था धुंआ -धुंआ
उस ने जो गुनगुना के सुनाई मेरी ग़ज़ल

हर एक शख्स मेरी ग़ज़ल गुनगुनाएं हैं
‘ राही ’ तेरी जुबां पे ना आई मेरी ग़ज़ल
- सईद राही

Tuesday, 10 October 2017

रस्में जहाँ की कोई कैसे अब निभायेगा....नीतू राठौर

पीयोगे कैसे निग़ाहों से पिलाई जाती है
शराब जैसे मैकदों में लुटाई जाती है।

तू होश में भी न पहचान पाई एक हमको
प्यास तो आँखों के प्याली से बुझाई जाती है।

तू रोज-रोज ही कहती पियों न आँखों से
दरिया बनके तू दिल में समाई जाती है।

डूबें है रात से आँखों के तेरे अंजुमन में
ये बातें चाँद-सितारों से छुपाई जाती है।

करो तो साँसों पे एतबार अब नहीं होता
सदाए दिल को धड़कन से सुनाई जाती है।

रस्में जहाँ की कोई कैसे अब निभायेगा
ख़्याल ओ ख़्वाब की दुनिया बसाई जाती है।

हमें तो खुद ही पिलाने यूँ आँखें आई थी
ऐसे ही प्यासे की प्यास "नीतू" बढ़ाई जाती है।
-नीतू राठौर

Sunday, 8 October 2017

यायावर सा सूर्य.....डॉ. इन्दिरा गुप्ता


उदया चल से 
अस्ताचल तक 
स्वर्ण सूर्य का 
गमन गगन !

नील पथ 
सिंदूरी आचमन 
चलता रथ 
सुन चिरई शगुन !

चक्र भ्रमण 
करे अनवरत 
अष्ट भाव के 
रख अश्व संग !

रुके ना पल भर 
चले निरंतर 
अकिंचन नहीँ 
रख प्रयास कंचन !

यायावर सा 
द्रुत पथगामी 
शनै: शनै:
पूरित कर लंघन !

मलय पवन 
शीतल अति चंचल 
उष्ण स्वेद बिन्दु 
से सिंचित !

चहुं दिशा 
हुँकारे पल पल 
चलित भाव 
रुकना नहीँ सम्भव !

कर्म रथ
हो आरुढित 
सम भाव मन 
सारथी चुन कर !!

-डॉ. इन्दिरा गुप्ता
साभारः अमित जैन 'मौलिक'

Saturday, 7 October 2017

कुछ क्षणिकाएँ....दीदी की डायरी से



ऐ जिंदगी 
तू सच में 
बहुत ख़ूबसूरत है…!
फिर भी तू, 
उसके बिना
बिलकुल भी 
अच्छी नहीँ लगती…!!
......
क्या हुआ अगर 
हम किसी के 
दिल में नहीं 
धड़कते, 
मगर हम
आँखों में तो 
बहुतों के खटकते हैं…
.....
‘सब्र’ 
एक ऐसी ‘सवारी’ है 
जो अपने ‘सवार’ को 
कभी गिरने नहीं देती;
ना किसी के 
‘क़दमों’ में 
और ना ही 
किसी के नज़रों ‘में’।
......
ये मोहब्बत भी 
आग जैसी है ..
लग जाये
तो बुझती नही..
और यदि…
बुझ जाये तो..
जलन होती है…!

-दीदी की डायरी से

Friday, 6 October 2017

यूँ न दिल को....श्रीमती आशा शैली

यूँ न दिल को उछालकर चलिए।
रास्ते देख-भालकर चलिए।।

वक़्त की देखिए नज़ाकत को।
ख़ुद को सांचे में ढाल कर चलिए।।

आज आना है उनको महफ़िल में।
आप दिल को सँभालकर चलिए।।

हुस्न की हैं नुमाइशें लगती।
आप ख़ुद को निखार कर चलिए।।

पार जाने की चाह हो दिल में।
नाव दरिया में डालकर चलिए।।

आपसे हम गिला नहीं करते।
आप भी बात टालकर चलिए।
-श्रीमती आशा शैली 

Thursday, 5 October 2017

चंद हाईकू...अमित जैन 'मौलिक'


मौन है हाँ है,
तुम भी तो हो जाओ
ज़ुदा ज़ुबाँ है।

पहले सीखो,
मरना सरल है
जीकर देखो।

पियो पहले,
सारी कड़वाहट 
यूँ कहाँ चले।

यह इल्ज़ाम,
कि बहने न दिया
नदी तो बनो।

अभी तुम हो,
तो बहुत कठिन
हम तो बनो।

गीली मिट्टी हूँ,
पानी नही मिलाओ
मन मिलाओ।

तेरा मेरा क्यों,
सब तो अपना है
रज़ा तो हो।

कहाँ से लाऊँ,
सुकूँ सब्र अब मैं
गुज़र तो हो।

और कितना,
सहता तो आया हूँ
और क्यों सहूँ।
-अमित जैन 'मौलिक'

Wednesday, 4 October 2017

इश्क़ के बाद में सब जुर्म हमारे निकले......परवीन शाकिर

शाम आयी तेरी यादों के सितारे निकले
रंग ही ग़म के नहीं नक़्श भी प्यारे निकले

रक्स जिनका हमें साहिल से बहा लाया था
वो भँवर आँख तक आये तो क़िनारे निकले

वो तो जाँ ले के भी वैसा ही सुबक-नाम रहा
इश्क़ के बाद में सब जुर्म हमारे निकले

इश्क़ दरिया है जो तैरे वो तिहेदस्त रहे
वो जो डूबे थे किसी और क़िनारे निकले

धूप की रुत में कोई छाँव उगाता कैसे
शाख़ फूटी थी कि हमसायों में आरे निकले
-परवीन शाकिर

अर्धनारीश्वर....लवनीत मिश्र


नर नारी का भेद केवल,
रूप रंग का भेद नहीं।
नर नारी की समानता,
आदर है,कोई खेद नहीं॥

हर नर में निहित है,
नारी सामान संवेदना।
हर नारी में निहित है,
पुरषार्थ की चेतना॥

अर्धनारीश्वर रूप है,
उदाहरण इस रूप का।
सम्मान हो एक दूजे का,
आदर हो इस स्वरूप का॥

अहंकार के जाल में,
उलझा यह समाज है।
पौरुष और नारीत्व का,
भेद ही विनाश है॥

सृष्टि के चक्र का,
यह दोनों आधार हैं।
साथ हों तो मंज़िलें,
पृथक तो बेकार हैं॥

-लवनीत मिश्र

Tuesday, 3 October 2017

चंद शेर...फ़ेहमी बदायूनी


छिपकली ने बचा लिया वरना 
रात तन्हाई जान ले लेती 
*** 
इक जनाज़े के साथ आया हूँ 
मैं किसी क़ब्र से नहीं निकला 
*** 
वहां फ़रहाद का ग़म कौन समझे 
जहां बारूद पत्थर तोड़ती है 
*** 
उसे लेकर जो गाड़ी जा चुकी है 
मैं शायद उसके नीचे आ गया हूँ 
*** 
बस वही लफ़्ज़ जानलेवा था 
ख़त में लिख कर जो उसने काटा था
*** 
शिकार आता है क़दमों में बैठ जाता है 
हमारे पास कोई जाल वाल थोड़ी है 
*** 
फूल को फूल ही समझते हो 
आपसे शायरी नहीं होगी 
*** 
तिरे मौज़े यहीं पर रह गए हैं 
मैं इनसे अपने दस्ताने बना लूँ 
*** 
नमक की रोज़ मालिश कर रहे हैं 
हमारे ज़ख़्म वर्जिश कर रहे हैं 
*** 
अदालत फ़र्शे-मक़्तल धो रही है 
उसूलों की शहादत हो गयी क्या 
फ़र्शे-मक़्तल = वध स्थल
-फ़ेहमी बदायूंनी

Monday, 2 October 2017

विधवा बनकर पेन्शन लेती....डॉ. डी.एम.मिश्रा

गाँव - गाँव हो गया भिखारी
ये कैसी माया सरकारी।

विधवा बनकर पेन्शन लेती
देखा एक सुहागन नारी।

वोट के बदले नोट मिलेगा
खुला ख़ज़ाना है सरकारी।

स्वाइन-फ्लू आ गया यहाँ भी
सूअर बाँट रहे बीमारी।

हाड़ के पीछे कुत्ते लड़ते
बीच सड़क पर मारा-मारी।

महाकुम्भ के इस मेले में
बुढ़िया गिरी, पिसी बेचारी।

मोदी हों या राहुल भैया
देश से ज़्यादा कुर्सी प्यारी।

कुछ कवि जनता का दुख गाते
कुछ गाते कविता दरबारी
-डॉ. डी.एम. मिश्रा

Sunday, 1 October 2017

धन्यवाद....अमित जैन 'मौलिक'

फिर वही सब याद आ रहा है।
तुम मुझे ग़लत न समझना
मैं करता हूँ कोशिश
तुम्हें भुलाने की,
अब कुछ अहद ही नहीं
तुम्हें आज़माने की।
भुला दूँगा, 
यकीन भी आ रहा है
पर ना जाने क्या बचा है
जो मुझे बहुत सता रहा है

हाँ याद आया!
तुम्हें धन्यवाद कहना है।
क्षमा करना कभी कहा ही नही
अपना पराये का कोई
ख़्याल मन मे रहा ही नहीं
हाँ, मुझे अब 
अपना बर्ताव बदलना है।
बदल लूंगा, 
यकीन भी आ रहा है
पर ना जाने क्या बचा है
जो मुझे बहुत सता रहा है।
-अमित जैन 'मौलिक'