ऐसा लग रहा है
ब्लॉग मे सालों बाद आई हूँ
आती भी नहीं
एक कविता पढ़ी मैं आज...
प्रतिक्रिया लिखते-लिखते
आती भी नहीं
एक कविता पढ़ी मैं आज...
प्रतिक्रिया लिखते-लिखते
वहीं रम गई...
आप भी पढ़िए वो प्रतिक्रिया..
आप भी पढ़िए वो प्रतिक्रिया..
जो ढल गई कविता सी...
....................
कौन कहता है
कालातीत हो जाते हैं
शब्द..
नहीं बनते इतिहास कभी
ये शब्द...
मान भी
अपमान भी
व्यंग भी
और तंज भी
मुखर होते हैं
इन्हीं शब्दों से...
यही वे शब्द हैं
उपयोग किया है
हरिवंश राय ने
शौकत थानवी ने भी
अपनाया इसे...
इन्हीं शब्दों से
हंसाया जग तो
काका हाथरसी ने....
इन्हीं शब्दों को
इन्हीं शब्दों को
अपनाएगी
आने वाली पीढ़िया भी
भाषा चाहे जो भी हो...
भाषा चाहे जो भी हो...
शब्द, शब्द है
और रहेंगे भी
शब्द ही
शब्द ही
इति शुभम्