Monday, 6 July 2020

ख़्वाब में आते हैं चले जाते हैं ....अब्बास ताबिश

मेरी तन्हाई बढ़ाते हैं चले जाते हैं 
हँस तालाब पे आते हैं चले जाते हैं 

इस लिए अब मैं किसी को नहीं जाने देता 
जो मुझे छोड़ के जाते हैं चले जाते हैं 

मेरी आँखों से बहा करती है उन की ख़ुश्बू 
रफ़्तगाँ ख़्वाब में आते हैं चले जाते हैं 

शादी-ए-मर्ग का माहौल बना रहता है 
आप आते हैं रुलाते हैं चले जाते हैं 

कब तुम्हें इश्क़ पे मजबूर किया है हम ने 
हम तो बस याद दिलाते हैं चले जाते हैं 

आप को कौन तमाशाई समझता है यहाँ 
आप तो आग लगाते हैं चले जाते हैं 

हाथ पत्थर को बढ़ाऊँ तो सगान-ए-दुनिया 
हैरती बन के दिखाते हैं चले जाते हैं 
-अब्बास ताबिश

2 comments:

  1. लाज़वाब गज़ल..।

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  2. मेरी तन्हाई बढ़ाते हैं चले जाते हैं
    हँस तालाब पे आते हैं चले जाते हैं -----
    शानदार रचना 👌👌👌👌👌

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