Monday, 22 June 2020

अपाहिज व्यथा ...दुष्यंत कुमार


अपाहिज व्यथा को सहन कर रहा हूँ,
तुम्हारी कहन थी, कहन कर रहा हूँ ।

ये दरवाज़ा खोलो तो खुलता नहीं है,
इसे तोड़ने का जतन कर रहा हूँ ।

अँधेरे में कुछ ज़िन्दगी होम कर दी,
उजाले में अब ये हवन कर रहा हूँ ।

वे सम्बन्ध अब तक बहस में टँगे हैं,
जिन्हें रात-दिन स्मरण कर रहा हूँ ।

तुम्हारी थकन ने मुझे तोड़ डाला,
तुम्हें क्या पता क्या सहन कर रहा हूँ ।

मैं अहसास तक भर गया हूँ लबालब,
तेरे आँसुओं को नमन कर रहा हूँ ।

समालोचको की दुआ है कि मैं फिर,
सही शाम से आचमन कर रहा हूँ ।
-दुष्यन्त कुमार

4 comments:


  1. वे सम्बन्ध अब तक बहस में टँगे हैं,
    जिन्हें रात-दिन स्मरण कर रहा हूँ ।

    तुम्हारी थकन ने मुझे तोड़ डाला,
    तुम्हें क्या पता क्या सहन कर रहा हूँ ।

    मैं अहसास तक भर गया हूँ लबालब,
    तेरे आँसुओं को नमन कर रहा हूँ ।
    बहुत खूब ,बचपन से ही इनकी रचनायें पढ़ती आ रही हूं ,भोपाल में इनका घर भी देखा है ,इनके संग्रहालय भी गईं हूँ ,इनके हाथ की लिखी डायरी ,रचनाओं का संग्रह ,ढ़ेरो तस्वीरे सब कुछ आंखों से देखा है ।सुखद अनुभव रहा ,उनके लिए लिखा गया खत बहुत कुछ देखा है

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  2. दुष्यंत कुमार एक अद्भुत महान साहित्यकार रहे ,उन्हें शत शत नमन

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  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 23 जून 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. धन्यवाद इस सृजन से मिलकत करवाने के लिए
    अच्छी प्रस्तुति
    आभार .

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