Monday, 22 June 2020

अपाहिज व्यथा ...दुष्यंत कुमार


अपाहिज व्यथा को सहन कर रहा हूँ,
तुम्हारी कहन थी, कहन कर रहा हूँ ।

ये दरवाज़ा खोलो तो खुलता नहीं है,
इसे तोड़ने का जतन कर रहा हूँ ।

अँधेरे में कुछ ज़िन्दगी होम कर दी,
उजाले में अब ये हवन कर रहा हूँ ।

वे सम्बन्ध अब तक बहस में टँगे हैं,
जिन्हें रात-दिन स्मरण कर रहा हूँ ।

तुम्हारी थकन ने मुझे तोड़ डाला,
तुम्हें क्या पता क्या सहन कर रहा हूँ ।

मैं अहसास तक भर गया हूँ लबालब,
तेरे आँसुओं को नमन कर रहा हूँ ।

समालोचको की दुआ है कि मैं फिर,
सही शाम से आचमन कर रहा हूँ ।
-दुष्यन्त कुमार

Sunday, 21 June 2020

बारिश आने से पहले...गुलज़ार

बारिश आने से पहले
बारिश से बचने की तैयारी जारी है

सारी दरारें बन्द कर ली हैं
और लीप के छत, अब छतरी भी मढ़वा ली है

खिड़की जो खुलती है बाहर
उसके ऊपर भी एक छज्जा खींच दिया है

मेन सड़क से गली में होकर, दरवाज़े तक आता रास्ता
बजरी-मिट्टी डाल के उसको कूट रहे हैं!

यहीं कहीं कुछ गड़हों में
बारिश आती है तो पानी भर जाता है
जूते पांव, पांएचे सब सन जाते हैं

गले न पड़ जाए सतरंगी
भीग न जाएं बादल से

सावन से बच कर जीते हैं
बारिश आने से पहले
बारिश से बचने की तैयारी जारी है!!
-गुलज़ार

Friday, 19 June 2020

जायका बदलिए...दिव्या


हाइकु सत्रह (17) वर्णों में लिखी जाने वाली सबसे छोटी कविता है। इसमें तीन पंक्तियाँ रहती हैं। प्रथम पंक्ति में 5 वर्ण दूसरी में 7 और तीसरी में 5 वर्ण रहते हैं।
संयुक्त वर्ण भी एक ही वर्ण गिना जाता है, जैसे (सुगन्ध) शब्द में तीन वर्ण हैं-(सु-1, ग-1, न्ध-1)। तीनों वाक्य अलग-अलग होने चाहिए। अर्थात् एक ही वाक्य को 5,7,5 के क्रम में तोड़कर नहीं लिखना है। बल्कि तीन पूर्ण पंक्तियाँ हों।

अनेक हाइकुकार एक ही वाक्य को 5-7-5 वर्ण क्रम में तोड़कर कुछ भी लिख देते हैं और उसे हाइकु कहने लगते हैं। यह सरासर गलत है, और हाइकु के नाम पर स्वयं को छलावे में रखना मात्र है।

है एक बला
नज़र भी मिला ले
कभी कभार




एक बला है नज़र भी
कभी मिल जाती है नज़र
और कभी लग भी जाती है

नज़र ....कोई बात कर लेता है
मिलाकर नज़र 

तो कोई निकल जाता है
चुरा कर नज़र...
कभी किसी को 
आ जाती है नज़र
तो कभी गुम हो जाती है नज़र
कोई डाल लेता है नज़र
और देख भी लेता है कोई

नज़र भर
कोई गा लेता है...
नज़रों के गीत
बड़ा अनोखा सा संम्बध है
नज़र का ज़िगर से